देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण और धुंध से राहत दिलाने के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग, यानी कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया की जा रही है। इसके तहत खेकड़ा, करोल बाग, मयूर विहार, बुराड़ी और अन्य कई क्षेत्रों के बादलों में रसायन मिलाया गया है।
दिल्ली में आज महापर्व छठ का उत्साहपूर्ण समापन हुआ, वहीं शहर की वायु गुणवत्ता को सुधारने के प्रयास में कृत्रिम बारिश की पहल की गई। राष्ट्रीय राजधानी में क्लाउड सीडिंग के लिए कानपुर से आए विमान का उपयोग किया गया। खेकड़ा, करोल बाग, मयूर विहार, बुराड़ी और अन्य इलाकों में बादलों में विशेष केमिकल डाला गया। इस प्रक्रिया के तहत बारिश होने में लगभग 40 मिनट से लेकर 4 घंटे तक का समय लग सकता है।
मौसम पर जमी नजरें
कानपुर से आया विमान उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में बुराड़ी के पास पहुंचकर सीधे ट्रायल में शामिल हुआ। यदि मौसम अनुकूल रहा, तो आज शाम क्लाउड सीडिंग का दूसरा प्रयास भी किया जाएगा।
यह ट्रायल राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा कराने के उद्देश्य से किया जा रहा है। यह सर्दियों के दौरान बिगड़ती वायु गुणवत्ता को सुधारने की दिल्ली सरकार की वृहद रणनीति का हिस्सा है। कृत्रिम वर्षा ट्रायल की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। पिछले हफ्ते सरकार ने बुराड़ी क्षेत्र के ऊपर एक ट्रायल उड़ान भी संचालित की थी। ट्रायल के दौरान विमान से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे यौगिकों की कम मात्रा छोड़ी गई, जो कृत्रिम वर्षा उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। हालांकि, वातावरण में नमी का स्तर 20 प्रतिशत से कम होने के कारण बारिश नहीं करायी जा सकी क्योंकि कृत्रिम बारिश के लिए सामान्यत: 50 प्रतिशत की नमी की आवश्यकता होती है।
आर्टिफिशियल बारिश कैसे की जाती है?
कृत्रिम वर्षा या आर्टिफिशियल बारिश से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है। बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है।
आर्टिफिशियल बारिश में भीगने के प्रभाव
आर्टिफिशियल बारिश, जिसे क्लाउड सीडिंग के नाम से जाना जाता है, एक तकनीक है जो मौसम को प्रभावित करने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें विमान या ड्रोन की मदद से बादलों पर विशेष रसायनों का छिड़काव किया जाता है ताकि बारिश की संभावना बढ़ाई जा सके। इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख रसायनों में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, ठोस कार्बन डाइऑक्साइड और कभी-कभी सोडियम क्लोराइड भी शामिल होते हैं। सिल्वर आयोडाइड व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है क्योंकि यह बर्फ की संरचना की नकल करता है और बादलों में पानी की छोटी बूंदों को जोड़ कर बारिश के रूप में गिरने में सहायता प्रदान करता है।
आर्टिफिशियल बारिश में भीगना आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि इसमें उपयोग किए जाने वाले रसायनों की मात्रा बेहद कम होती है। लेकिन, जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील है, जिन्हें एलर्जी होती है या जो सांस संबंधी समस्याओं जैसे अस्थमा या ब्रोंकाइटिस से पीड़ित हैं, उन्हें इससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इन परिस्थितियों में यह हल्की जलन या असहजता का कारण बन सकता है और उनकी तकलीफ बढ़ा सकता है।
IIT कानपुर ने ली जिम्मेदारी
दिल्ली सरकार ने 25 सितंबर को आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर कृत्रिम वर्षा के पांच परीक्षणों के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने पहले ही आईआईटी कानपुर को एक अक्टूबर से 30 नवंबर के बीच कभी भी परीक्षण करने की अनुमति दे दी थी। इसके साथ ही, केंद्रीय पर्यावरण, रक्षा और गृह मंत्रालयों, उत्तर प्रदेश सरकार, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो सहित केंद्र व राज्य की 10 से अधिक एजेंसियों से भी आवश्यक स्वीकृतियां प्राप्त हो चुकी हैं।

