टूटे हुए लफ्ज़ों को

बटोर कर मैंना

लिखना सिखा हैं।

बहतें अश्कों के 

दरिया में डूबकर

मैंना तैरना सिखा है।

जिस मिट्टी में 

मेरे अपनों ने ही

मुझे मिट्टी किया,

उस मिट्टी से मैंना

खुद को ढालना सिखा हैं।

जिस ऊंचाई के 

अहं में लोगों ने

मुझे नीचे गिराए,

उस ऊंचाई के भी

आसमाँ को मैंना  

छूना सिखा है।

मुकाम-ऐ-दौर में

अपनों से ही मुझे 

जो ठोकरें मिली,

उन ठोकरों से मैंना 

आगे बढ़ना सीखा हैं।

डॉ.राजीव डोगरा

कांगड़ा हिमाचल प्रदेश (युवा कवि लेखक)

(हिंदी अध्यापक)

पता-गांव जनयानकड़, पिन कोड -176038, कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

rajivdogra1@gmail.com

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