जब मैं शांत हो जाऊंगा
तुम अशांत हो उठोगे
हृदय के अंतकरण तक।

मेरा मौन
सदा के लिए तुम्हारे हृदय में
अशांति को विद्यमान कर देगा।

मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति
तुम्हारे लिए करना
कठिन से भी कठिन हो जाएगी।

नव नासिका का
भेदन करता हुआ मैं
कभी दशम द्वार के
परमानंद के अमृत कलश का
अमृत पीता हूँ।

तो कभी अनाहत मैं बैठे
अपने इष्ट का स्पर्श कर
हंसता मुस्कुराता हुआ
फिर इस धरा पर
चुपचाप लौट आता हूं।

अपने अतृप्त हृदय के लिए
तुम्हें सहस्रार का भेदन कर
दिव्य प्रेम सरिता में
डूब कर मुझ में
लीन होना ही होगा।

राजीव डोगरा

(युवा कवि लेखक और भाषा अध्यापक)

पता-गांव जनयानकड़, पिन कोड –176038

कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

Rajivdogra1@gmail.com

9876777233

7009313259

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