कल बेंगलुरु में का माहौल पूरी तरह से उत्सव की झलक दिखा रहा था। लेकिन ऐसा क्या हो गया कि यह हंसी-खुशी का माहौल अचानक अफरा-तफरी में बदल गया? इस पर हमारी ग्राउंड रिपोर्ट, दीपक बोपन्ना और नेहाल किदवई के जरिए।
स्टेडियम के बाहर लाखों की भीड़ के बीच उत्साह और उमंग का माहौल था, लेकिन एक छोटा गेट और अप्रत्याप्त व्यवस्थाओं ने बेंगलुरु में RCB की जीत के जश्न को शोक में बदल दिया। एक भयावह भगदड़ के कारण पूरे देश को झकझोर देने वाली घटना सामने आई, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए। स्टेडियम की क्षमता महज 35,000 थी, लेकिन वहां एक लाख से अधिक की भीड़ उमड़ पड़ी। हालात इतने बिगड़े कि बेरिकेट्स के नीचे लोग फंस गए, धक्का-मुक्की और अफरातफरी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया। भीड़ प्रबंधन में हुई चूक और पर्याप्त पुलिस बल की कमी ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना पर कर्नाटक सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं, जबकि पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ FIR दर्ज की है। सवाल यह उठता है कि आखिरकार जश्न की यह रात इतनी दुखद दुर्घटना में कैसे बदल गई? क्या यह हादसा रोका जा सकता था? क्या पुलिस और प्रशासन की लापरवाही ने इसे और भयानक बना दिया? इन सवालों के जवाब जांच में सामने आ सकते हैं, लेकिन इस त्रासदी ने भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा इंतजामों में मौजूद खामियों को उजागर कर दिया है।
हादसा कैसे हुआ?
कल बेंगलुरु में पूरी तरह से उत्सव जैसा माहौल था, लेकिन अचानक यह खुशी भगदड़ में कैसे बदल गई? हमारे संवाददाता दीपक बोपन्ना की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, इस अप्रत्याशित घटनाक्रम को समझने के लिए उन्होंने पुलिस और कई प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत की। दीपक बोपन्ना ने बताया कि मौके पर भीड़ एक लाख से अधिक थी, जबकि पहले यह कहा गया था कि केवल पास या टिकट धारकों को ही अंदर प्रवेश दिया जाएगा। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में जुटी भीड़ को देखकर अधिकारियों ने सोचा कि शायद सभी को अंदर जाने दिया जाए और स्थिति को वहीं संभाल लिया जाए। यहीं पर प्रशासन से चूक हो गई, और मामला बिगड़ गया।

गेट बना भगदड़ का कारण
स्टेडियम में केवल 35,000 लोगों के बैठने की क्षमता थी, लेकिन वहां भीड़ बढ़कर एक लाख से अधिक हो गई। प्रवेश के लिए केवल एक छोटा सा गेट था, जिसमें से एक बार में मात्र दो लोगों को अंदर जाने की अनुमति थी। हालांकि, लोग जबरदस्ती तीन से पांच की संख्या में अंदर प्रवेश करने लगे। इसी दौरान चोट लगने की घटनाएं शुरू हो गईं। जो लोग पीछे खड़े थे, उन्होंने देखा कि आगे के लोग अंदर जा रहे हैं, तो वे भी धक्का-मुक्की करते हुए आगे बढ़ने लगे। इस हड़बोंग के कारण भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। मौके पर कई लोगों की चप्पलें और जूते बिखर गए।
पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या घटनास्थल पर पर्याप्त पुलिस बल मौजूद था? इवेंट दो स्थानों पर हो रहा था, और विधानसभा में भी गतिविधियां चल रही थीं, जिसके कारण वहां ज्यादा पुलिस बल तैनात था, जबकि यहां सीमित संख्या में पुलिसकर्मी मौजूद थे। कई फैंस ने नियमों का सम्मान करते हुए ऑर्डर का पालन किया, लेकिन कुछ लोगों ने नियमों को नज़रअंदाज़ करते हुए कंपाउंड पर चढ़ना शुरू कर दिया। ऐसे में यह चर्चा भी जरूरी हो जाती है कि क्या भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल की संख्या पर्याप्त थी या नहीं।